बस इतना कहूँगा अपने बारे में.........
जिंदगी भी बड़ी अजीब है, कभी बहकती है तो सामने कुछ भी नजर नहीं आता है, और जब कहे में चले तब भी कभी-कभी कुछ भी नहीं दिखता है. लेकिन फिर भी जिंदगी के सफ़र में कोई लोग मिलते हैं और कई बिछुड़ जाते हैं. जिंदगी में बहुत कुछ देखा-अनदेखा रह जाता होगा? ऐसा मानना है. फिर भी कुछ शब्द किसी की परछाई हुए होंगे. और कई परछाई शब्दों के साये में छीप गई होगी. यकीन कौन दिलाये?
"हम तो बस जगजीत सिंह जी की गाई गजल शेर को सच मान आगे बढ-बढ चलेंगे,
देख लो ख्वाब मगर ख्वाब का चर्चा न करो,
लोग जल जायेंगे सूरज की तम्मना न करो "
"वक़्त का क्या है किसी पर भी बदल सकता है,
हो सके तुमसे तो तुम मुझ पर भरोसा न करो "
क्योंकि कभी किसी ने कहा था
"समझते थे मगर फिर भी न रखी दूरियां हमने,
चरागों को जलाने में जला ली उँगलियाँ हमने "
Saturday, December 31, 2011
Tuesday, December 20, 2011
Friday, October 7, 2011
Subscribe to:
Posts (Atom)